बढ़ती चीनी मिठास से सावधानी ज़रूरी

Advertisements
Ad 3

प्रोफेसर राहुल सिंह (अध्यक्ष) उत्तर प्रदेश वाणिज्य परिषद

बाबतपुर (वाराणसी) : हमारे प्रधानमंत्री इन दिनों चीन यात्रा पर हैं उनका स्वागत चीन में जिस परम्परागत तरीके से हो रहा है वह आश्चर्यजनक है। उसके पीछे जो कारण हैं उसे नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी 1950 में पंचशील समझौता के सिद्धांतों के निर्माण में चीन की सहभागिता होने के बावजूद ‘चीनी हिन्दी भाई भाई’ कहते हुए उसने सन् 1962में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ जो छल किया था ,वह देश कभी नहीं भूल पाएगा। जिससे भारत की आत्मा को करारी चोट पहुंची थी और इसी ग़म में पंडित नेहरू 1964 में हृदयाघात से चले गए थे।

तब से अब चीन के साथ हमारे रिश्ते कभी ठीक नहीं रहे। विदित हो, लद्दाख का अक्साई चिन है हमारा, अरुणाचल का तवांग भी हमारा ही है। इतना ही नहीं तिब्बत को पूरा हड़प लिया गया है। तिब्बती हमारे शरणागत हैं।आज तक इन विषयों पर कोई सहानुभूतिपूर्ण रुख चीन ने नहीं अपनाया है।

हालांकि भारत और चीन के संबंधों में सुधार के मुख्य प्रयास 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा से शुरू हुए, जिसने 1962 के सीमा संघर्ष के बाद आए तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद, 1993 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए। समय-समय पर द्विपक्षीय वार्ताओं और अनौपचारिक सम्मेलनों के आयोजन से भी संबंधों में सुधार की कोशिशें की जाती रहीं हैं सन1993 में भी सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

2000 के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ताओं, अनौपचारिक सम्मेलनों और नेताओं के बीच मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा, जिससे संबंधों को सामान्य करने के प्रयास किए गए।यानि लगातार हमारे देश के प्रधानमंत्रियों ने शांति सद्भाव के प्रयास किए हैं। 2014 में तो मोदी जी ने इस वर्ष को चीनी मैत्री वर्ष ही घोषित कर दिया था। लेकिन 2020 से चले सीमा तनाव के बाद भी, हाल ही में सैनिक टुकड़ियों को पीछे हटाने और शांति बहाल करने पर सहमति बनी है, जो संबंधों में सुधार की संभावना को दर्शाता है।

लेकिन आपरेशन सिंदूर के वक्त पाकिस्तान को चीन ने जिस तरह भारत की जासूसी की और हथियारों से नवाजा उससे चीन के आचरण का पता चलता है। यह भी तथ्य सामने आ चुका है कि पड़ोसी बांग्लादेश से चीन अपने व्यापारिक संबंधों की खातिर हमारी चिकिन नेक जो पूर्वांचल की एक संकरी पट्टी है पर नज़र गड़ाए है उसने अपने क्षेत्र के पास गलवान तक पहुंच मार्ग बना लिया है जो वह चिकिन नैक से ढाका तक ले जाना चाहता है ताकि बंगाल की खाड़ी का इस्तेमाल व्यापार और सामरिक दृष्टि से आसान हो सके। यह सब तब हुआ जब हमारे प्रधानमंत्री ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए चीनी राष्ट्रपति को अहमदाबाद में झूला झुलाया था।

अमेरिका और यूरोपीय देशों से बिगड़े सम्बन्ध सुधारने का भारत का यह प्रयास कितना फायदा और नुकसान का होगा यह तो वक्त बताएगा। किंतु यह तो ज़ाहिर है कि चीन भारत के बिग बाजार को हड़पने की चेष्टा में लगा है।चीनी सीमा से वैसे भी अवैध रुप से बड़ी मात्रा में व्यापार चल रहा है।चीनी सामान यहां लोकप्रिय भी है।

चीन से गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति घर घर में पहुंच चुकी है।चीन से आए मज़बूत दीपकों ने भारतीय मिट्टी के दीपों की खपत कम कर दी है।चीनी झालरें तो बदनाम हैं ही।ऐसी कोई इलेक्ट्रॉनिक उपभोक्ता सामग्री नहीं है जो भारतीय घर में ना पहुंची हो फिर यदि उसे सरकार द्वारा व्यापार का अधिकार मिल जाता है तो वह भारतीय लघु और कुटीर उद्योगों को खत्म करने वाला सिद्ध होगा।यानि बेरोजगारी और बढ़ेगी।

हमारी चीन से लगी सीमाएं ख़तरे में हैं।ऐसा ना हो हमारी विश्व में कमज़ोर हालत देखकर हम पर तरस खाकर देश को और कमज़ोर कर दें। क्योंकि इतिहास गवाह है कि चीन विश्वसनीय दोस्त नहीं है। यह मानते हुए कि चीन इस समय विश्व में नंबर वन की स्थिति में है। हमारे समझौते समझदारी से हों दबाव में या ज़रूरत से ज़्यादा मिठास पाने के प्रयास में ना हो।

उसकी बेचैनी भारत से व्यापार बढ़ाने के साथ साथ दक्षिण पूर्व एशिया से समुद्र मार्ग से जुड़ने की है जो आगे चलकर हमारे लिए खतरनाक हो सकती है। अमेरिका से हम ठोकर खा चुके हैं। इसलिए सावधानी पूर्वक दोस्त बनाएं। नंबर वन से दोस्ती का ढिंढोरा पीटना भी घातक होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!