91वीं जयंती पर स्व. श्रीमति कुसुम तांबे को श्रद्धासुमन
इंदौर /मंडला स्व. श्रीमति कुसुम लता तांबे का जीवन सादगी, भक्ति और सेवा का अनुपम उदाहरण था। वे संगीत, साहित्य और समाज सेवा का अद्भुत संगम थीं।
18 सितंबर 1934 को बालाघाट में जन्मीं श्रीमति तांबे हिन्दी और संगीत की स्नातकोत्तर थीं। नागपुर और लखनऊ आकाशवाणी व दूरदर्शन पर उन्होंने शास्त्रीय, सुगम और लोकगीतों से अपनी पहचान बनाई।
मराठी रचनाओं का हिन्दी अनुवाद कर उन्होंने भाषा-संवर्धन में योगदान दिया और “आखिरी सवाल”, “दोजख”, “शिव धनुर्भंग” जैसे नाटकों व अहिल्याबाई-जिजाबाई के एकल अभिनय से रंगमंच को समृद्ध किया।
लखनऊ की सुविधाजनक जीवनशैली छोड़कर भाभीजी ने अपने सास–ससुर और पति की सेवा हेतु आदिवासी अंचल मंडला को कर्मभूमि बनाया। यहाँ उन्होंने संगीत शिक्षा दी और नमामि देवी नर्मदे, संस्कार गीत, हिन्दी गीतरामायण जैसे एलबमों से समाज को सांगीतिक धरोहर दी।

वे 1984 में नारी विकास समिति की संस्थापक बनीं और जीवन के अंतिम वर्षों तक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं का मार्गदर्शन करती रहीं। उनकी प्रमुख कृतियों में आखिरी सवाल, मैं दुर्गा खोटे, बालगीत, छह स्वर्णिम पृष्ठ और वेदकालीन स्त्रियां शामिल हैं।
26 मई 2015 को वे इस लोक से विदा हुईं, पर उनकी स्मृतियाँ आज भी जीवित हैं।
“उनकी 91वीं जयंती पर अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, भारतीय पत्रकार सुरक्षा परिषद एवं निगम परिवार उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित कर नमन करता है।”
भाभीजी, आपकी सादगी, सेवा और भक्ति हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी।
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— राजेश निगम, इंदौर
(मध्य प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष)
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा
एवं
भारतीय पत्रकार सुरक्षा परिषद
