अवैध खनन जांच में देरी महंगी पड़ी, एनजीटी ने डीएम सोनभद्र पर लगाया जुर्माना

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O- अवैध खनन पर बड़ी कार्रवाई: सोनभद्र के डीएम पर एनजीटी ने लगाया 10 हज़ार रुपये का जुर्माना

O- समय पर रिपोर्ट न देने पर दिखाई सख्ती, 28 जनवरी 2026 अगली सुनवाई

सोनभद्र । सोनभद्र जिले में अवैध खनन को लेकर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने बड़ा कदम उठाते हुए जिलाधिकारी सोनभद्र पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। एनजीटी ने डीएम की ओर से जांच रिपोर्ट में अनुचित देरी को गंभीरता से लेते हुए इसे न्यायालय के आदेशों का पालन न करने की श्रेणी में रखा है।

अप्रैल में बनी संयुक्त समिति, डीएम बने थे नोडल अधिकारी

एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की पीठ ने बताया कि अवैध खनन के आरोपों की पड़ताल के लिए अप्रैल 2024 में एक संयुक्त समिति का गठन किया गया था।
इस समिति में-

  • जिलाधिकारी (नोडल एजेंसी)
  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (लखनऊ क्षेत्रीय कार्यालय)
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)
  • उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB)
    के अधिकारी शामिल थे।

समिति को 23 जून 2024 तक रिपोर्ट न्यायाधिकरण के सामने प्रस्तुत करनी थी।

समयसीमा का पालन नहीं, एनजीटी ने कहा, लापरवाही स्पष्ट

पीठ ने आदेश में कहा कि जिलाधिकारी के रवैये से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने न्यायाधिकरण के निर्देशों का ईमानदारी से पालन नहीं किया, जिससे मामले के निस्तारण में अनावश्यक देरी हुई।
एनजीटी ने इसे “प्रशासनिक उदासीनता” बताते हुए डीएम पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

एक सप्ताह में जमा करना होगा जुर्माना

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि जिलाधिकारी को यह जुर्माना एक सप्ताह के भीतर एनजीटी बार एसोसिएशन के पास जमा करना होगा।
पीठ ने चेतावनी दी कि भविष्य में किसी भी प्रकार की देरी पर और कठोर कदम उठाए जाएंगे।

अगली सुनवाई 28 जनवरी 2026 को

मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी 2026 को निर्धारित की गई है, जिसमें रिपोर्ट की प्रगति और अवैध खनन पर प्रशासन की कार्रवाई की समीक्षा की जाएगी।

सोनभद्र में अवैध खनन लंबे समय से विवाद का विषय

सोनभद्र और आसपास के इलाकों में अवैध खनन और पर्यावरणीय नुकसान का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने खनन माफियाओं और लापरवाह प्रशासन पर सवाल उठाए हैं।
एनजीटी की यह कार्रवाई इस मामले में प्रशासनिक जवाबदेही तय करने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

राष्ट्रीय स्तर पर यह मामला एक बार फिर प्रशासनिक कार्यशैली और अवैध खनन पर शासन की निगरानी को लेकर बड़े सवाल खड़े करता है।

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