लेखपालों के तबादले बने मज़ाक

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कोई 10 तो कोई 5 साल से एक ही सर्किल पर जमे

जुगाड़ से फिर लौट आते हैं मनचाही पोस्टिंग पर

वीआईपी और वीवीआईपी सर्किलों पर कुछ चुनिंदा लेखपालों की पकड़ इतनी मजबूत है कि प्रशासनिक आदेश भी औपचारिकता बनकर रह गया।

सोनभद्र। राजस्व विभाग में लेखपालों की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है  ज़मीन-जायदाद, हैसियत, जाति और निवास से जुड़ी हर रिपोर्ट में लेखपाल की सिफारिश ही निर्णायक होती है।

लेकिन सोनभद्र में यह जिम्मेदार पद अब जुगाड़ और पहुंच का केंद्र बन गया है। जिले में दर्जनों ऐसे लेखपाल हैं जो पिछले कई वर्षों से एक ही सर्किल या तहसील में जमे हुए हैं।

कोई 10 साल, तो कोई 5 साल से ज्यादा समय से एक ही क्षेत्र में तैनाती का लुत्फ उठा रहा है। शासन द्वारा तबादले के आदेश जारी होने के बावजूद इनकी पोस्टिंग पर कोई असर नहीं पड़ता।

सूत्रों की मानें तो जैसे ही तबादले की सूची जारी होती है, कई प्रभावशाली लेखपाल अपने संपर्कों और सेटिंग के जरिए तबादला निरस्त करा लेते हैं या कुछ ही दिनों में फिर उसी सर्किल में लौट आते हैं।

वीआईपी सर्किलों में जमे प्रभावशाली लेखपाल जिले के कई वीआईपी और वीवीआईपी सर्किलों पर कुछ चुनिंदा लेखपालों की पकड़ इतनी मजबूत है कि प्रशासनिक आदेश भी उन तक पहुंचकर औपचारिकता बनकर रह जाते हैं।

ऐसे सर्किलों में जहां ज़मीन के विवाद, मुआवज़े या खनन से जुड़े मामलों की भरमार है, वहां लंबे समय से वही चेहरे तैनात हैं जिनके नाम कई बार तबादला सूची में भी शामिल हुए, पर हकीकत में कुर्सी नहीं छोड़ी।

शासन के निर्देश बेअसर, जुगाड़ का खेल जारी हाल ही में शासन ने सभी जिलों में लेखपालों के कार्यक्षेत्र बदलने का निर्देश दिया था ताकि पारदर्शिता बनी रहे और क्षेत्रीय प्रभाव समाप्त हो। लेकिन सोनभद्र में इन आदेशों का कोई विशेष असर दिखाई नहीं दिया।

कई चर्चित नाम अब भी अपनी पुरानी जगहों पर सक्रिय हैं, जबकि प्रशासनिक स्तर पर उनके तबादले के आदेश भी पहले जारी किए जा चुके हैं।

प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहे सवाल

जिले में यह चर्चा आम है कि कुछ लेखपालों की पहुंच इतनी ऊंची है कि अधिकारी भी उनके तबादले को लेकर असहज महसूस करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजस्व विभाग में तबादले सिर्फ कागज़ी प्रक्रिया बनकर रह गए हैं? निष्कर्ष जहां एक ओर शासन राजस्व व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की बात करता है, वहीं दूसरी ओर सोनभद्र में लेखपालों की मनमानी और जुगाड़बाज़ी ने पूरे सिस्टम की साख पर सवाल खड़ा कर दिया है। जनता उम्मीद कर रही है कि इस बार सिर्फ आदेश नहीं, वास्तविक कार्रवाई भी देखने को मिले।

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